पत्नी
सहस्र स्वरूप धड़ैत जहिना
ब्रह्म, विष्णु ओ महादेव।
नारी-पुरुष सेहो तहिना
सहस्र श्रृंगार करैत चलैत।
ब्रह्म-जीव, माया जहिना
संग रहि संग चलबो करैत।
तहिना ने नारी-पुरुष संग
आदियेसँ चलि आबि रहैत।
सुगरक चरबाहि करैत धर्मराज
राता-राती बना देखौलनि।
माटि सटल ठमकल सुगरकेँ
महींस बना आकास उठौलनि।
बापे घरसँ सीख आबि बेटी
पतिक संग जीवन धारण करैत।
गिरहस्त घरक बेटियो तहिना
घर-परिवारक लूरि-बुइध सिखैत।
एक देश दोसरसँ जहिना
हटल-सटल सेहो चलैत।
तहिना ने गामो-समाज बीच
व्यक्ति-परिवार सेहो चलैत।
पूर्व लूरि संग कन्या जहिना
पतिक सजाएल संग धड़ैत।
तहिना ने सजल-सुकोमल
पत्नीक हाथ लपकि पकड़ैत।
गिरहस्तीक रूप सजबैत पत्नी
बोनिहारक संग बनलीह बोनोहारिनि
जिनगीक भार उठैत देखि-देखि
हृदए खोलि छाती लगौलियनि।
चिन्ता नै उमेरक कनियो
भरिसक लगले-भीड़ले छी।
कनी एम्हर आकि ओम्हर
मस्तीसँ मौज करिते छी।
अपन बूझि करैत अपना ले
जिनगीक धार टपि-टपि बढ़ैत।
कारीगरी संग करुआरि पकड़ि
संग मिलि संगे चलैत।
रंग-बिरंगक पहाड़-पठार बीच
वन-उपवन सोहे सजल-ए।
हर्ष-विषादक बीच बहि तहिना
नजरि नजरिक बीच चलैए।
कियो-लग कियो दूर देखि
थामि-थामि कऽ डेग उठबैए।
कियो दूर-लग दुनूक बीच
झटकि-झटकि सेहो चलैए।
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