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Tuesday, April 10, 2012

विभूति आनन्द - एक- दू- तीन- चारि- पाँच- छओ- सात- आठ- नओटा कविता



प्रतिपक्ष : एक
जखन दिन भरिक उठापटकसँ
थाकल-हारल सन घुरैत छी डेरा
तँ मोन करैए, जे
कोनो क्लैैसिकल संगीत कानमे अबैत
हाथमे गरम-गरम चाह,
सूगर फ्रीबिस्कुट हड़ारतिकेँ दूर करैत
गामघरक हवा-बसातकेँ, आकि
नगर-महानगरक चालि-कुचालिकेँ अकानैत
कनियाँक तनावरहित आकृतिकेँ निहारितहुँ
संतानक कुशल-क्षेमक मादे बतबितहुँ ।
जखन दिन भरिक उठापटकसँ
थाकल-हारल सन घुरैत छी डेरा
तँ मोन करैए, जे
कोनो बिसरल-बिछुरल सखाकेँ मोन पाड़ितहुँ !
आकि बीतल साल भरिक
सभसँ सुखद कोनो एकटा,
मात्र एकटा दिनकेँ हियासितहुँ !
आकि आगत सालक लेल
कोनो नीक सन एकटा,
मात्र एकटा सपना बुनितहुँ !
मुदा एहन सन कहाँ किछु भऽ पबैए!
अपन अनुकूल किछु नइ बुझाइए
ने खान-पान, ने इच्छा-आकांक्षा
ने सोच, ने अपसोच......!
लगैए जेना,
हम यंत्र-मानव बनल सन जीबऽ लागल छी
अपना अनुकुल किछु नहि होएबाक यंत्रणा
दिन-प्रतिदिन बढ़ले जाइए.....
ओ जे देखाबऽ चाहैए, सएह देखै छी
ओ जे खोआबऽ चाहैए, सएह खाइ छी
ओ जे सोचाबऽ चाहैए, सएह सोचै छी
हम बदलि रहल एहि चर्चासँ
खूबे चिंतित बुझा रहल छी बंधु !
जखन दिन भरिक उठापटकसँ
थाकल-हारल सन घुरैत छी डेरा,
तँ ई चिन्ता आर-आर गाढ़ भऽ अबैए
आ तखन हम
एहि आरोपित जीवन-शिल्पसँ
खूबे परेशान भऽ उठैत छी !


प्रतिपक्ष: दू
प्रश्न तँ ई नइ छै, जे हमर मोनक प्रतिपक्ष
अपन समस्त ऊर्जाकेँ सुता देलक अछि निश्चेष्ट
आकि, कहियोक करजन्नीा सन आँखिमे
मोतियाबिन्द प्रवेश कऽ गेलैए !
प्रश्न इहो नइ छै जे एहि विलासी अन्हड़मे
ओ मृत्युक कामना करऽ लागल अछि
आकि, विकलांगी नदीमे ठठबाक लेल
नग्न. भावसँ पड़ि रहल अछि !
प्रश्न ई छै, जे जखन
चिनमार धरिमे प्रवेश कऽ गेल हो गर्म हवा
जादूगरी कला-कौशल
कऽ रहल हो अपन-अपन आरम्भिक प्रदर्शन,
आ जकर स्वादक लेराह वातावरणमे
भऽ रहल हो सभटा जीवन-संदर्भ गडमड-
तखन की करबाक चाही?
तखन की करबाक चाही, जखन
पक्ष आ प्रतिपक्षक बीच
नहि रहि गेल हो कनियोंटा विभाजक रेखा!
जखन एक दिस कएल जा रहल हो
युद्धक जैविक उदघोष, आ दोसर दिस
ओही मुँहेँ कएल जा रहल हो
शान्तिक वैश्विक मंत्रोच्चार-
प्रश्न ई छै जे तखन की करबाक चाही?
प्रश्नकक एहि जटिलताक बीच बाझल हम
ताकि रहल छी ठाम-ठामक जीवन
जीवनमे खिच्चा-भाव,
ताहि खिच्चा-भावमे नव मानवीय उत्सुकता
बंघु
हमर एहि अनुसंघानमे जरूरे अहाँक कर्त्तव्य रहत
से विश्वासि लेलहुँ अछि अपना अन्दर सहजेँ।
ताबत सहि लिअ गर्म हवाक थापड़
बेसी सीदित करए जँ दर्द
तँ कैंसरक रोगी जकाँ तिल-तिल तकरा
अपन मोनक हाथेँ सोहरबैत सहैत रहू, सहैत रहू.....

इएह हाथ एक दिन बनत गऽ मुट्ठी आ
मुट्ठीक संख्यामे जेना-जेना होइत जेतै बढ़ोत्तरी,
तँ अनेरो संघीय गप-सप भऽ जेतै मजबूरी
संवादहीनता नहि भेलैए दीर्घजीवी
कहियो नहि, कखनो नहि
ताबत दू डेग पाछू आबि
दू डेग आगू अएबाक करैत रहू दयनीय चेष्टा
किएक तँ
चक्रवातक एहि धाहीमे पड़ल प्रतिपक्ष लेल
एखन जरूरी अछि- वेट एण्ड वाच’!

मदारी युग
हमरा होइत रहैए, जे
क्यो  हमरा पोलहएबाक चेष्टा कऽ रहल अछि
हम चीन्हि रहल छी ओकरा
ओ हमर मित्र नहि अछि
मुदा तैयो मित्र होएबाक घोषणा कऽ रहल अछि
बाजार-भाव गर्म छै, जे
हमरा दुनूमे मित्रता भऽ गेल अछि
समदियाकेँ पठा-पठा, अथवा
दूरभाषेपर उठा-उठा
अपन चालिकेँ ओ ठोकि रहल अछि
कखनो-कखनो
अपन करतबसँ डेरा सेहो रहल अछि
फँसएबाक सरनरिया-शिल्पि सेहो अपना रहल अछि
नहि सहज, तँ असहजे भऽ भऽ कऽ
ककरो अन्दर पैसबाक ओकर ई कला
बहुतोकेँ मोहविष्ट कऽ चुकल अछि
तेँ अपन विजय-बाटपर रभसि सेहो रहल अछि
एम्हर हम बेस चौकऽ लागल छी
ओकर अबरजात बढ़ले जा रहल अछि
ओना, इहो ओकर अपन शिल्पी छै
कहियो लगातार अबैत रहत
तँ कहियो बाटे बिसरि जाएत
कहियो-कहियो तँ अपन वाणीक माध्यमे अबरजात बढ़ाओत
आ से, तकर अनेक अर्थ लागत
ओना ओ बुझा देत जे एहन सन किछु नइ छै
मुदा तैयो तंग करबै
तँ विराम-अर्धविराम-विस्मय आदि संकेतक
रहन-सहन प्रयोग कऽ कऽ बुझा देत, जे
अहाँ चकित रहि जाएब! छकित सेहो भऽ जाएब
आ एहना स्थितिमे जँ
एक अहाँ मात्र गफ्फाक बीचसँ ससरि गेलिऐ
तँ ओकरा लेल धन सन
तकर एबजमे दोसर-तेसर अनेक भक्त
ओकर वाकचातुरीक सोझाँ नतशिस भऽ जेतै
आ ओ एक तरहेँ
अहाँक, समर्थन-शिल्पमे अभिनन्दन कऽ
अहाँक बिखरल विरोधीकेँ संगोरि लेत.....
एहन सन नइ छै जे हम कमजोर भऽ रहल छी !
शत्रु, मित्र नइ भऽ सकैए
शत्रु वास्तवमे एकटा जीन थिक
जकर सभटा संबंध अनुबंधपर रहैत छी
आ से हम नीक जकाँ बुझैत छी
हम तँ संक्रमण-कालक सभसँ पैघ अस्त्र
कविता द्वारा
ओकर मन-मयूरक पएरपर नजरि देबऽ कहैत छी
जकर रंगक संबंध ओकर मनक संग तँ ने जुड़ल छै,
से सोचऽ कहैत छी
हम विभिन्ने ढंगे साकांक्ष रहऽ कहैत छी
मदारी-युगसँ सोझाँ-सोझी भऽ रहल छी

नब पी‍ढ़ी
ओ हमर उल्लासित गामक बीतल बसंत छल
जे हमर डेराक मेन गेट लग
थाकल-ठेहिआएल सन उदास, ठाढ़ छल
अनायास ओकरापर नजरि पडि़ गेल
भीतर आबऽ कहलिऐ
मुदा जेना ओ किछु नइ सुनलक
चीनीक रोगी सन लागल
तथापि बड़ी काल धरि ठिकियबैत रहल
आ हमरा अन्दर जेना किछु दरकैत रहल
किछु काल बाद ओ भिझाएल हँसी हँसि देलक
लागल जेना, ओकर अंदरक बीतल वसंतक
आर किछु पँखुरी झड़ि कऽ
हमर मेन गेटक माटिपर आबि लेढ़ा गेल
हमरा अंदरक विकराल होइत पीड़ा
किछु सोचि नहि पाबि रहल छल
अनुत्तरित छल पूर्वक सभटा हल कएल प्रश्न
हम ई मेलफोललहुँ
हम नेटमे ओझरएलहुँ
हम ग्लोिबल चिंतनपर पुनर्चिंतन कएलहुँ.....
एहि क्रममे बहुत किछु भेटल
नवीनतम सेहो। संभावित सेहो
मुदा ओ नइ भेटल, जे हमर डेराक
मेन गेटपर लेढ़ाएल सन ठाढ़ छल, आ जे
हमरासँ हमर नेनपनक हिसाब माँगि रहल छल
हम एकरासँ लड़ि रहल छी लगातार
लगभग दू-अढाइ दशकसँ तँ निश्चिते
मुदा एहि दू-अढाइ दशकक अन्दर फूटल
नव पीढी लग
कहाँ देखैत छी एहन सन कोनो पीड़ा!
ओ तँ अपन मस्तिष्कक मैसेज बॉक्ससँ
एहन सन भावकेँ प्राय: खाली कऽ निराशक्त अछि
पुछबै किछु, तँ तेहन पूछि देत
जे हम महोमहो भऽ जाएब
ओकरे दुनियाँमे बहि जाएब
एखन स्थिति ई अछि, जे
हम सभ एक दोसरसँ आँखि चोरा सेहो रहल छी
एक-दोसरकेँ देखिकऽ आँखि जुटा सेहो रहल छी!


अराड़ि जोतैए
ई समय अतुकान्त अछि
एहनामे जँ हम तुकक गप करी
तँ से समय-सापेक्ष नहि होएत
एखन हम अनुवादमे जीबि रहल छी,
जे शुद्ध अतुकान्त अछि
ओहिमे लय तँ छै, मुदा तुक नइ
आजुक युगमे एकर, आकि एकरेटा अस्तित्व अछि
से, जहियासँ सिकुरि गेल अछि पृथ्वी्,
एकर अनिवार्यता बेडरूमधरि आम भऽ गेल अछि
सभ सभक गप बुझि रहल अछि
स्वाद बुझि रहल अछि
स्वर बुझि रहल अछि
एहि स्वर आ स्वादपर
दलाल स्ट्रीटक महिमा अछि
सेंसेक्स्क उतार-चढ़ाव अछि
नन्दीकग्राम अछि
नासा आ सुनीता विलियम्स अछि
लाल मस्जिद आ बाढि़ अछि .....
सभटा नीक-अघलाह आइ
एही सोचपर नृत्यमान अछि
तेँ आजुक समयमे किछु असंभव नहि अछि
किछुओ लग-दूर नहि अछि
सभ किछु पारदर्शी, किछु अदर्शी नहि
जेँ ई समय अतुकान्त  अछि
तेँ कविता आ जीवनक भाषा एकाकार भऽ गेल अछि
तेँ कैमराक लेंस धरि कविता लिखैत अछि
विज्ञापनक भाषा कविता बजैत अछि
सम्पूर्ण जीवने कवितामय भऽ गेल अछि
जतऽ ओकर
सर्वांगीण समस्यापर विमर्श सम्भव भेल अछि
तेँ एहनामे जँ हमर सुचिता ओ संस्कार
संस्कृति ओ आचारसँ
कोनो अमूर्त्त भाव सनक परिचिति
अपन अस्तित्व लेल, अपन-अपन श्वेतपत्र
जारी करैत जा रहल अछि लगातार
नेटधरिमे फीडकरैत जा रहल अछि
अपन गौरवमय परम्परा
तँ हम की कऽ सकैत छी।
हमरा तँ लगैत अछि
जे हमर ई परिचितिजन्य  ढाल
बुढ़बा साँढ़ जकाँ
जीवनक गति ओ प्रवाहकेँ
अहेर कऽ कऽ रोकि राखऽमे विश्वास करैए
समयक आदि-अन्तकेँ
अपन एही हुकहुकी छरपानमे जीबैत देखैए
सुप्त चेतनामे आएल सपना संग
भ्रम पोसैत अराड़ि जोतैए

वस्तुत:
अजीब अछि ई महानगर
हम एकरासँ जतबे परिचित होबऽ चाहैत छी
ई ततबे अपरिचित बनि जाइए
हम भिनसरे
जाहि निर्जन बाट धऽ कऽ जाइत डेराइत रहैत छी
घुरती खेप ओतऽ बाट नइ भेटैए !
भऽ सकैए, मास दिन छओ मासपर जाइ
तँ ओतऽ गोटेक अपार्टमेंट देखी
खेलाइत-धुपाइत....मुस्कैत-खिलखिलाइत.....
हम अपन
परिचित किराना पट्टीसँ राशन ली
आ पुन: मास दिन बाद आबी, तँ
किरानापट्टीक अपन ओहि परिचित परिसरपर
मल्टी स्टोरीज बिल्डिंग सनक बजार.....
.... नहि नहि, ‘मॉलदेखी,
जकर अन्दर जाइते जेना हॉल ढुकि जाए !
से,
अपन अन्दर उगि आएल
एहि अनिश्चितताक पाँखि संग उड़िया जाइ
आकि जकथक रही-
ई सोचब-गूनब बड़ भयाओन लगैए
पहिल-पहिल जहिया एकर दर्शन भेल छल,
हमरा अन्दर तँ अदंक लऽ लेने रहए!
सभ चेहरा व्यस्त
सभ आँखि चौचंक
सभ डेग अपस्याँित
सभ इच्छा अतृप्त
अजीब तरहक भागमभाग......
ओतहि अध्ययनरत अपन पुत्रसँ
सड़क पार करबा लेल ठाढ़
सहसा एक दिन पूछि बैसल रही
एहि प्रकारक अस्थिरताक कारण?
मुदा ओ तकर उत्तर नहि दऽ सकल छल
ओकर नजरि
ट्रैफिक-बत्तीपर टिकल रहलै....टिकल रहलै.....
आकि सहसा हमरा छोड़ि आ हाथक संकेत दऽ
बजबैत, सड़क पार कऽ गेल!
सड़कक एहि पार हम
सड़कक ओहि पार ओ
बीचमे भागमभाग......अफरातफरी......
अजीब अछि ई ठाम
बेर-बेर अपरिचित बनि
अबैत रहैए हमर समक्ष, आ हम
ताहिमे हेराएल जा रहल छी, हेराएल जा रहल छी.....
से, वस्तु अपरिचित ठाम नहि,
हम भेल जा रहल छी
हम भेल जा रहल छी....

अंतिम पीढि़क बयान
मौसम कुहेसक सीरक ओढ़ा।।
सूर्यकेँ सुतबा लेल विवश कएने अछि
एकरे मारल बीच घुना रहल अछि
अनेक टुस्साी नेंगरा रहल अछि
तोतराइत सुनि रहल छी फूलकेँ सेहो
मौसमक मरखाह चाँगुरसँ डेराएल
हमर आँखिमे बैसल विश्वास
अपन डेरा रहल विश्वशसनीयतासँ
भयभीत भऽ रहल अछि
विवश सूर्य सूतल अछि,
सात समुद्र पारसँ रंग-रंगक पेय
रंग-रंगक स्वप्न  आ ओकर संसार
नेटद्वारा परसल जा रहल अछि
हमर आँखिमे मोतियाबिन्द फुला रहल अछि
हम ओकरा संग रभसि रहल छी
चुभकि रहल छी ओकरा संग
सर्दिया रहल छी सर्वांग
तथापि मुस्किया रहल छी अनवरत
एहि विपरीत मौसममे तैयो
हम प्रतिरोधक संग जीबि रहल छी
हम मोन पाड़ैत छी
हथिया-नक्षत्रक पानिमे नहाइत कोना सिहरैत रही
पाँतरक पीपरक गाछ तर घमाएल
जेठक दुपहरियामे कोना सुस्ताइत रही
फगुआमे कोना गबैत रही जोगीड़ा.......
हम मोन पाड़ैत छी
जाड़क साँझक पजरैत घूर आ भोरक
गाँती बन्हने कटकटाइत दाँत।
जूडि़शीतलमे उराही होइत पोखरि-इनार,
आ थाल-पानिसँ जुड़ाइत अंग-अंग.......
हम चिक्का खेलैत मचकी झुलैत
मोन पाड़ैत छी बाध-बोन, चर-चाँचर
प्राती....सोहर....महराइ....लोरिकाइन....
गबैत मोन पाड़ैत छी
ओ सभटा हेराएल जीवन-शिल्प ....

हम मोन पाड़ैत छी
कनसारसँ अबैत लाबा-भूजाक सोन्हगर गंघ
हम मोन पाड़ैत छी
मालजालक गरदनिमे बान्हल घंटीक संगीत
हम मोन पाड़ैत छी
पारिवारिक अटूट संबंध,
सदाबहार सामाजिक सौहार्द्रक गान

हम मोन पाड़ैत छी
मोन पाड़ैत रहैत छी जखन-तखन
ओ सभटा खुशी, जे बेदखल कऽ देल गेल अछि
हमर भावना, हमर परिचिति, हमर मौलिकतासँ....
हम मौसमक एहि बदलल नेत संग
एकरा प्रतिरोध मानि
एहिना जीने जा रहल छी अनथक....अनवरत....
हम एहि शताब्दीक अंतिम एहन पीढ़ी छी
जे प्रतिरोधक एहि शिल्पकक संग लड़ि रहल छी
मुदा....मुदा सत्य तँ ई अछि
जे ताही अनुपातमे जल्दीत-जल्दीी
अपन संतानसँ अनचिन्हार भेल जा रहल छी....

एकटा साम्यवादीक आत्म कथा
अपन जन्मकथाक मादे एतबेटा बूझल अछि जे
ओ बरोबरि हमर आँखिमे आँजन करैत रहै छलि
कजरौटीसँ मांगि कऽ ओकर रंग
हमर कपारक कातमे ठोप जकाँ लगबैत छलि
भरिसक, अपन अन्दर कोनो यात्राक सपना रोपैत
हमरा नजरि-गुजरिसँ बचएबाक
ओ एकटा भावुक सन प्रयास करैत रहै छलि
हमु कने छेटगर भेल रही
तँ ओ हमरा ठेहुनमे भरबाक लेल कूबत
लड़े लड़ेकऽ ध्वनिक संग चलब सिखौने छलि....
बादमे तँ हम अपने चलऽ लागल रही....
से, किछु समय घरि तँ ओकर छाती धरकैत रहलै

.‘लड़े लड़ेक ध्वनिमे पराजयक कम्पन बुझाइत रहलै
मुदा बादमे तँ सभटा डर-भय पड़ा गेलै
आ ओ हमरा दिससँ निचैन भऽ गेलि....
अहाँ बूझि गेल होएब
जे ओ आन क्यो नहि, हमर माँ छलि!


दोसर अध्याय
किछु समय बीतल,
हम अपन जन्मकथा बिसरि गेलहुँ
जीवनकथा लिखबा लेल
पाछू तकबाक पलखति नहि भेटल
हमरा संग
संगी-साथीक एकटा गोल बनि गेल छल,
जकरा अन्दरमे नहु-नहु सिहकैत बसात छलै....
आँखिमे उजाससँ, कतहु कोनो खटास नहि
किछु नव करबाक सिखबाक मात्र जिज्ञास.....
हमर जीवन कथाक प्रेम-संबंधक ई केहन रूप छल,
सहजेँ बूझि नहि पओलहुँ
हम टूटल ताग सभकेँ जोड़ा लगलहुँ
हम गुदरीकेँ सीबि-सीबि सुजनी बनबऽ लगलहुँ....
ई तँ बादमे जाकऽ बुझल भेल जे हमरा
अपन जीवन-संदर्भक प्रसंग भेटि गेल
आ एकटा अनाम अपरिचित ऊर्जासँ जेना
हमर मन-प्राण रोमांचित भऽ उठल
अपन खानगी कहि दी
जे ई हमर, सृजनसँ जुड़बाक समय छल !

तेसर अध्याय
समय-सापेक्ष हम
अपन उत्कर्षक तमाम निष्कर्षकेँ
पूर्ण मानबासँ सभ दिन अस्वीकारैत
कखनों काल कऽ पाछू सेहो ताकऽ लागल रही
हम तकैत रही
अपन किछु विशिष्ट स्वप्नदर्शी संगी सभक
पूर्व-परिचित पदचापकेँ,
किएक तँ हम बीच सरोवरसँ
काढि़कऽ अनने रही किछु रक्त-कमल
पीठपर पाँखि उगा
जीवन-रफ्तारक तमाम हदसँ आगू बहरा जएबाक
अकूत आकांक्षा छल हमरा अन्दर....
हमरा अन्दर चिन्तनक टटकापन
वैश्विक जनाधारक संग, वर्त्तमान रहए
चारूकात दिपदिपा रहल छल जीवनक समेकित सौन्दर्य
बंघु!
ई हमर गतिमान अवधिक शिखर-काल छल

चारिम अध्याय
आइ एहि जन-अरण्य मध्य चलैत
एसगर, नितांत एसगर लागि रहल छी हम
मोन पड़ि रहल अछि
अपन गाम सनक अछि
अपन गाम सनक अनेक गाम
ओकर हवा, ओकर नदी
ओकर हँसी, ओकर रुदन,
जतऽ अपन अनेक स्वप्नदर्शी संगी संग
मुखर हम, किछु बुनने रही
आपसमे बहुत-बहुत यात्राकेँ गुनने रही
आइ एहि जन-अरण्य मध्य  चलैत
चलैत-चलैत चकुआइत-चौंकैत हम
अजीब तरहक दहशतमे जीबि रहल छी

स्वप्न
कोनो दीयर सन उदास ताकि रहल अछि
कतऽ गेल ओ स्वप्नदर्शीक समूह?
कतऽ गेलै ओकर स्व‍र, ओकर सुभाव ?
ठीके, काफी असोकर्यमे छी
एहि जन-अरण्य मध्य चलैत
तकैत रहै छी चतुर्दिक जखन-तखन
चौंकैत-चकुआइत रहै छी जखन-तखन
आ ओकर सभक
पूर्व परिचित पदचापक
अधीरतासँ प्रतीक्षा करैत रहै छी, ई सोचैत
जे आखिर एहन कोन बिसंजोग भऽ गेलै
जे विराट सामूहिकताक ओ सपना
एना छहोछीत कोना भऽ गेलै।
आजुक एहि वैश्विक बाजारमे हमरा लेल
ई विचलन, ई विखण्डन
चिताक ताप सन लागि रहल अछि
आ हम खोजी नजरि लेने
चकुआइत ताकि रहल छी बाट.....
तेँ कहबामे कोनो हर्ज नहि
जे दिशाहीनताक विरुद्ध
ई हमर आत्म-मंथनक काल थिक।

पाँचम अध्याय
आइ हम अचम्भित छी, भयभीत सेहो
किएक तँ आश्चर्यजनक रूपसँ हम
किछु तेहन चित्र देखबा लेल बाध्य  भेलहुँ अछि
जकर तेहन कोनो अपेक्षा नहि  कएने रही
हम देखलहुँ जे हमर किछु अनन्य‍ संगी
अपन-अपन हाथमे
मल्टी-नेशनलक झालि लऽ लेलनि
तँ किछु भगवा धारण कऽ लेलनि

क्यो-क्यो , छिट फुट
लालबत्तीमे अपन-अपन रूप ताकऽ लगली
तँ अधिकांश, एकटा कऽ चौकठि अँगेजि
अपना-आपकेँ दादी-नानी बना लेलनि....
आ सभ जेना एक-दोसरसँ अनचिन्हार भऽ गेलहुँ!
की पौलहुँ, की गमौलहुँ, तकर हिसाब-बही जेना
कमला-कोसी सन कोनो-कोनो नदीमे
प्रवाहित भऽ गेल....दहा-भसिया गेल अनंत सागरमे....
किछु जे तैयो अपनाकेँ चिन्हार राखि सकल,
सेहो अपनेमे सहस्त्र दल भऽ गेल
दलदलमे फँसैत चलि गेल, अथवा
कोनो-कोनो राज्य, आकि देशक संसद मध्य,
नहि तँ कोनो-कोनो कल-करखानाक व्यवस्था संग
व्यवस्थित जीवन जीबऽ लागल....
वर्त्तमान अध्याय
ओना ई अध्याय पूर्ण नहि गेल अछि
तथापि जतऽ गामसँ
नगर-महानगर लेल फुटै छै रस्ता.
हम ठाढ़, अपन हेराएल-भुतिआएल
संगी सभकेँ हियासि रहल छी, संगहि
जे बाटक प्रतीक्षामे अछि,
तकरो अपना दिस हकारि रहल छी...
हियासबाक आ हकारबाक ई क्रम अविराम जारी अछि ....
आ से,
एहन विपरीत परिवेशमे सहसा
हमरा अपन माँ मोन पड़ैए
आ हम ओकरे जकाँ सौंस जारनिक अभावमे
खुहरी जोड़ि-जोड़ि
पुन:पुन: आगि पजारबाक व्योंत धरा रहल छी
हम तमाम विपरीतक बीच पिरीत ताकि रहल छी
वस्तुत:, ई तँ हमर उजरल खोंतामे
भगजोगनी अनबाक काल थिक
आ तेँ हम फेरसँ नेना बनि गेल छी
आ हमरा एकटा माँक बेगरताक
पुन:पुन: अनुभव भऽ रहल अछि ।

कुहेसक अन्हड़
इजोरिया रातिमे
पसरल अछि अन्हार
रजनीगंधाक गाछसँ
बहरा रहल अछि दुर्गंध
बाटपर
चलि रहल अछि थाकल डेग
बहुत दूरसँ प्राय:
चलल छै कुहेसक अन्हेड़,
जे छापि लेबऽ चाहैए जेना
कुमुदिनीक खिलखिल हँसीकेँ
हम एहि दूरीकेँ नापऽ चाहै छी
अपन विचारक घोषणापत्रसँ
आ फेरसँ लिखऽ चाहै छी
पुनर्जागरणक सपना
आइ लोक सपना देखैए
बहुत नीक-नीक सपना देखैए
मुदा,
तकरा ताही नीक ढंगे
बिसरि सेहो जाइए
हम सपनाकेँ
बिसरऽ नहि चाहै छी
हम अपन अततिक संग
वर्त्तमानसँ लड़ैत
फेरसँ
भविष्यक कविता लिखऽ चाहै छी
हम अपन कवितामे
निगुर्ण नहि, सोहर आ पराती गाबऽ चाहै छी

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