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Tuesday, April 10, 2012

राजदेव मण्‍डल- झाँपल अस्‍तित्‍व



नहि जानि कहियासँ
चाँपल अछि
हमर अस्‍तित्‍व
एकटा आकृतिसँ
झाँपल अछि
कखनहुँ काल
ओ देखबैत अछि त्रास
बारम्‍बार हटेबाक
हम कऽ रहल छी प्रयास
किन्‍तु ओ नहि छोड़ैत अदिबास
टकराइत रहैत अछि
हमरा मतिसँ
निर्बाध अपना गतिसँ
देखऽ चाहैत छी हम
सरुप
नहि अछि हुनक कोनहुँ रुप
सुनने छलहुँ हम खिस्‍सामे
एहन अनजानकेँ
देखि सकैत अछि शीसामे
हम मानैत छी
खास ज्ञानेन्‍द्रियसँ जानैत छी
भीतरमे ओ लगा रहल अछि फानी
सुनि रहल छी वक्र-वाणी
प्राप्‍त करबाक लेल उत्‍कर्ष
करऽ पड़त आब संघर्ष
नहि तँ बना सकैत अछि हमरा जोगी
किन्‍तु अस्‍तित्‍वक लेल अछि
ईहो उपयोगी।

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