भयाउन वातावरणमे
आत्माक शान्ति नहि ताकू।
रक्तपातक बाद, शून्य आकाशमे
खुशीक चुम्बन नहि करू ।
ओ अहाँक गलती हएत, महान
रणभूमिमे
विश्वि शान्तिक नारा लगाएब ।
ओ अहाँक गल्ती हएत
तोपक गोलामे
भातृत्वक सन्देश ताकब ।
घृणा आ स्वार्थक सागरमे
विश्व आ बन्धु्त्वक शंखघोष किए करै छी
हिंसा आ आतंकक बीच
गौतम बुद्धक सन्देश
पनिसोह रहत ।
अपन फुसियाहिंक आर्दशकेँ
कृत्रिम रूपेँ नहि झाँपू
समए बड्ड आगाँ बढ़ि गेल अछि।
स्वार्थी आ व्यक्तित्ववादी समाजमे
कृत्रिम आदर्शक बीजारोपण नहि करू
अहाँक आदर्श सभ
कालान्तरमे
अहींकेँ डसि लेत।
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