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Tuesday, April 10, 2012

माए :: जगदीश मण्‍डल


माए

भेटि‍ नै पबैत शब्‍दकोषमे
एक्को उदाहरण माइक लेल।
नजरि‍ उठा जखन देखै छी
माताराम की सभ देल।
तीसे बर्खमे वि‍धवा भेलौं
कहब कि‍ अहाँसँ मइया।
मनुख बना ठाढ़ कऽ देलौं
बाकी कि‍ रखलौं हे मइया।
कनतोड़ी भरि‍ अपन आभूषण
बेचि‍-बि‍‍कीन लगा देलौं
जुआनी गला जे सि‍नेह वि‍लहलौं
बदलामे हम की कऽ देलौं।
राखि‍-सम्‍हारि‍ घरसँ बाहर
अपन ओ लागि‍क परि‍वार।
लुटा-मेटा अपन जि‍नगीकेँ
जि‍नगी जीबैक चढ़ेलौं धार।
हँसी-खुशी जि‍नगी ससरैए।
सटि‍-सटि‍ आनो परि‍वार।
एक-दोसरमे भेद कहाँ-ए।
संगे-संग मानो-सम्‍मान।
नव-नव चेहरा सि‍रजि‍
नव-नव काज धड़बैए।
नव-नव परि‍वार समेटि‍
नव-नव सि‍नेह सजबैए।
अपन सदृश अपने हे मैया
शब्‍द कहाँ अछि‍ जे कि‍छु कहबह।
अपन रूप परसि‍-परसि‍
अपने सन हमरो बनेलह।
      ))((



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