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Tuesday, April 10, 2012

राजदेव मण्‍डल- सीमा परक झूला



ई जर्जर झूला
लगैत अछि जेना तुला
सीमापर लटकल अछि
पुरान डारिपर अटकल अछि
पेंगापर झूलि रहल छी
आब स्वयंकेँ बिसरि रहल छी
अन्तिम छोरसँ
अपन बाँहिक जोरसँ
लगा रहल छी आस
नहि छी निराश
आस-पास
प्रभातक उजास
कखनहुँ एहिपार
कखनहुँ ओहिपार
बारम्बार
दोहराबैत छी कार्य ब्यापार
कट-कट-कट-कट
टूटि रहल डारि
दैत गारि
तइयो सम्हारि
धरतीसँ नाता जुटि रहल अछि
गाछसँ झूला छूटि रहल अछि
एम्हर आकि ओम्हर खसब
रहब स्वछन्द आकि जालमे फँसब
जीएब वा मरब
फेर किएक डरब
चाहे खसब एहिपार
चाहे खसब ओहिपार
रहत इएह धरती
इएह भाव आर विचार
सुख हो वा दुख
रहब अन्ततः मनुक्ख।
चीड़ीक जाति
धायल पाँखि पर
लटकल लहाश
लऽ कऽ पहुँचल
नीड़क पास
ओ जे ओकर नहि
किन्तु ओकरे छल
लहू सँ भीजल तन
कण-कण
सशंकित अछि चीड़ीक मन
तइयो
मातृत्व सिनेह
पियाबए चाहैत अछि
खियाबए चाहैत अछि
लोलमे राखल अहराक दाना
अनजान बच्चा गाबि रहल गाना
पाछू लागल शिकारी
बनल अछि अधिकारी
जेकरा भूखल आँखिमे
तरजू अछि लटकल
स्वादक बैटखारा
अछि मनमे अटकल
एकटा पलड़ामे प्रौढ़गात
दोसरमे अछि नवजात
घायल देह
टुटैत नेह
टप-टप चुबैत खूनक बूनसँ
धरती भऽ रहल स्नात
पूछि रहल अछि चिड़ै
अपना मनसँ ई बात
आबऽ बाला ई कारी आ भारी राति
कि नहि बाँचत हमर जाति...?

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