Pages

Tuesday, April 10, 2012

शेफालिका वर्मा - बाजी



ई हमर देश थीक
एहिठाम मानव की मानवकेँ चीन्हि सकल?
तरहत्थीपर टघरैत पारा सन मानवक मोन
स्थिरता नहि।

आदमीक जंगल बढ़ि रहल
गाछ बृच्छ कटि रहल
कोनो बाट घाट, कोनो राह हाट
मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारा
वा
चर्चक हो वोसारा
भीड़क अन्त नहि...
की पएरे की रिक्शा
की कार की स्कूटर
तरहक सवारीपर भगैत
उजहिया चढ़ल मानवक अन्त नहि...
ई दिशाहीन भीड़:
भूत भविष्यक चिन्ता नहि
वर्तमानसँ संतुष्टो नहि
भागि रहल निरन्तर
भागि रहल जन प्रवाह...
संवेदना तितीक्षा
नहि भेटत शब्दकोशोमे जल्दी
मानवक आवश्यक आवश्यकता सन
शब्दकोशो आकार पाबि रहल
निरर्थक शब्द संसारक प्रयोजने की?
कागदोक दाम तँ बढ़ि गेल
पत्र-पत्रिका छापत कोना
प्रदूषणक हल होएत कोना
जे एकटा गाछ रोपल जाइत अछि तँ
सए नेना जनम लए लैत अछि
ऑक्सीजन पाओत कत्तऽ मेनिंजाइटिस
एड्स स्पोंडीलाइटिस सन अनचिन्हार बीमारी लोककेँ मारए लागल
एतबहि नहि
दहेजक बढ़ैत रोग बेटीक बापकेँ
ढाहए लागल
ओ दिन दूर नहि अछि जखन
मानव मानवकेँ मारि खाए लागत
आ एकटा प्रश्न तखनो समस्या बनल रहि जाइत अछि
मानवक बेशी वृद्धि की
महगी क..?
बाजी दुनूमे लागल अछि
के कतेक आगू
केकर कतेक जोर...????
राम कतए चलि गेल...

No comments:

Post a Comment