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Sunday, April 8, 2012

गोधन पूजा :: जगदीश मण्‍डल


गोधन पूजा

सरस्‍वती-लक्ष्‍मी दुनू बहि‍न
मि‍लि‍-जुलि‍ गोधन पूजलनि‍।
मन संकल्‍प सि‍रजि‍ दुनू
चलैक दि‍शा मन ठनलनि‍।
एक चचलि‍ मटि‍आरी रस्‍ता
दोसर धेलनि‍‍ गोलोक बाट।
दि‍लीपक अमूल्‍य सेवा देखि‍
पंचागम रचि‍ सजलनि‍ घाट।
जे गाइक गोबरसँ
गोबरधन पहाड़ बनै छै।
ऐ गोबरधन बखारमे
अन्न-कण अम्‍वार लगै छै।
वएह गोबरधन उठा कृष्‍ण
जान बचौलनि‍ ब्रजवाला।
झाँट-बि‍हाड़ि‍, पाथर-ठनका सहि‍
मुरली तानि‍ देलनि‍ नन्‍दलाला।
क्षीर सागर कि‍नछड़ि‍ बि‍रजि‍
सरस्‍वती लक्ष्‍मी दि‍स देखलनि‍।
एके गाछक दू डारि‍ छी
अपन-अपन पुरखा जगलनि‍।
एक चलए अकास मार्गसँ
दोसर धरती बीच ओंघराइत।
मने-मन दुनू आनन्‍दि‍त
राति‍-दि‍न सदति‍ बौआइत।
      ))((

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