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Tuesday, April 10, 2012

बदरीहन :: जगदीश मण्‍डल


बदरीहन

बदरीहन समए बीच जहि‍ना
अमवसि‍या राति‍ अबैत रहै छै।
कलि‍-कलि‍मल वसन ओढ़ि‍
कालिंदी कूल सजैत रहै छै।
पक्ष इजोत अबैसँ पहि‍ने
अन्‍हार पक्ष छेकने रहै छै।
अन्‍हरा-अन्‍हरा अन्‍हार बीच
बाट इजोत हराएल रहै छै।
चौबीसो घंटा दौड़-धूप
राति‍-दि‍न, दि‍न-राति‍ खेलैत रहै छै
चढ़ि‍-उतरि‍ समए संग-संग
अपन गति‍ये खेल खेलै छै।
बराबरीक भाग लगा-लगा
सालक बीच हि‍साब जोड़ै छै।
बाट-घाट आगूओ-पाछू
पहुँचि‍ लक्ष्‍य नि‍सांस छोड़ै छै।
समए-साल देखि‍यो सुनि‍
मास नै पूरा पबै छै।
हारि‍-जीत मध्‍य जि‍नगी तहि‍ना
मानि‍ माइन पबैत रहै छै।
जहि‍ना दि‍नेक राति‍ बनि‍-बनि‍
राति‍-दि‍न कहबए लगै छै।
दि‍ने-राति‍, राति‍ये दि‍न
मि‍लि‍-जुलि‍ सि‍रजए लगै छै।
अंत पहाड़ श्रृंग ठेकि‍ अकास
सि‍ंगार रूप सजबए लगै छै।
ऊपर धरती सजल-धजल
गड़ूगर पएर ससरए लगै छै।
ससरि‍-ससरि‍, हटि‍-हटि‍
रसे-रसे कात हटै छै।
सि‍र बि‍नु धड़, धड़ बि‍नु शीश
चि‍न्‍ह-पहचि‍न्‍ह बि‍सराइ छै।
मौसम पाबि‍ मौसम जहि‍ना
ऋृतु परि‍वर्तन करैत रहै छै।
जि‍नगी मनुष्‍योक तहि‍ना
बीच बेवस्‍था बदलए लगै छै।
कहि‍यो रौदमे डाहए
तँ कहि‍यो पानि‍-पाथर बरि‍साबए।
ओस-पाल बनि‍-बनि‍ कहि‍यो
हृदए बीच छाती दलकाबए।
मध्‍य धार बीच जहि‍ना
मुँह-धार कहबै छै।
तहि‍ना बेवस्‍था बीच समाज
मुँह-धार बनबै छै।
जेहेन मुँह-धार समाजक
तेहने धार पकड़ि‍-चलत।
दुख-बेथाक बोन-झाड़केँ
खलखला-खलखला कटैत चलत।
))((

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