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Sunday, April 8, 2012

सरस्‍वती वंदना :: जगदीश मण्‍डल


सरस्‍वती वंदना

साले-साल कि‍अए अबै छी
क्षणे-क्षण अबैत रहू
हर क्षण हर मनकेँ
अमृतसँ भरैत रहू।
क्षणे-क्षण...
नव शक्‍ति‍क नव उत्‍साह दऽ
सि‍रजन शक्‍ति‍ भरैत रहू
कर्म-ज्ञानकेँ घोड़ि‍-घोड़ि‍
सि‍नेहसँ सि‍नेह सटैत रहू।
क्षणे-क्षन...
जे हूसल से हम्‍मर हूसल
तइले कि‍अए छी कलहन्‍त
सभ जागैए सभ सुतैए
एक दि‍न हेतै सबहक अंत
नजरि‍-उठा देखैत रहू।
क्षणे-क्षण...
देवी अहाँ, मैया अहाँ
भेद‍ कतौ अछि‍ कहाँ
जोड़ल आँखि‍ उठा-उठा
पले-पल देखैत रहू
क्षणे-क्षण अबैत रहू।

))((

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