रे ! हमर मीत सुगा तहूँ
असगरे उड़ि गेलेँ
भोरमे पराती
आ संझामे साँझ
गाबिकऽ सुनऽबैछलेँ
भोरमे उठऽबै छलेँ,
कहिकऽ सुनबै छलेँ
“पटटु ! सीताराम कहो”।
फुलल छली संगहि
तो असगरे मौर गेलेँ।
दूर जुनि जो हमरा तोँ छोड़ि कऽ
क्षण भरि लेल आबि जो
हमरा अप्पन बुझि कऽ ।
किछुए देर नाचब
किछुए देर गाएब
हमहूँ तोरे संग कहब
“पटटु ! सीताराम कहो”।
हमहूँ आएब तोरे लग
मुदा किछु क्षण बाद
किछुए देरक ई कष्ट थिक
भोगहे पड़त ।
एक दिन हावासँ तीब्र भऽ
हमहूँ तोरे लग आएब
तोरे संग नाचब
तोरे गीत गाएब
मुदा आबहि परत
हम अएबे करब
फेर तोरे संग कहब
“पटटु ! सीताराम कहो”।
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