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Saturday, April 7, 2012

कविता- ज्योति सुनीत चौधरी


1) हिमपात

बर्फ ओढ़ने वातावरण
मानू आकाश टूटी का बिखरी गेल
अपने आप के छिरियाक
सबके एक रंग में रंगी गेल
थर्थाराबैत सर्दी स भयभीत
सब जीव अपन जगह धेलक
प्रकृति के इहो अवरोध मुदा
मनुष्य के नहीं बंधी सकल
भांति प्रकारक साधन जुगारालक
विकत परिस्थिति पर विजय लेल
अपन सर्वश्रेष्ठ बुद्धि बल स
मनुष्य अंततः सफल भेल
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2) गामक सूर्यास्त

एक अद्भुत दृश्य मोन पारी चकित भेलहु
पोखरिक भीर पर हम ठाढ़ छलहूँ
आकशक नीलवर्ण भेल रंगमय
दिया बातीक मुहुर्त में सूर्या सबस विदा लय
क्षितिज में विलीन हु अ लागल
संग ओकर प्रकाशपुंज सेहो भागल
सबहक खरिहान में लालटेन टिमटिमाय छल
पक्षी सब समदाओन गाबि रहल छल
सेहो ध्वनि मंद परी गेल
सांझ राति में बदली गेल
फेर स अगिला भोर में पक्षीगन
गायत प्राती सब मिली एक संग
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3) विशाल समुद्र

सामुद्रक लहरिक तरंग
अनगनित बेर दुहरा रहल अछि
उद्देश्यहीन अपने मुदा ओकर गान
कहिया कतय स चली रहल अछि
बेर बेर रेत पर बनल पदचिह्न
मिटाक तट स घूरी जायत अछि
जलक सबस शक्तिशाली संगठन
सागारक रूप में उपस्थित अछि
रातिक अन्हारो में ओकर गर्जन
ओकर विशालताक आभाष करबैत अछि
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4) आधुनिक जीवन दर्शन
अतिशयोक्ति स विरक्ति अछि
जाबे ओ दोसरक प्रशंसा में होई
परंच निंदा में कियैक कंजूसी
जखन अनकर करबाक होय
असभ्य ता ओकरा बुझब
जे हमर प्रशंसक के रोकैया
ने हमर कियो प्रशंसक अछि
ने समाज में कियो असभ्य बुझाइया
परोपकार करनाहर के आशीष
जे हमर काज बना गेल
अन्यथा ओ सब बेरोजगार
जे आनक कार्य में लागि गेल
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5) मनुष्य आ ओकर भावना

कठोर ह्रदय में भावुकता नुकायल भेटल
पुछालिई तोहर आब कोन स्थान
बरी निर्मलता स उत्तर देलक
हमरा स नहीं तोरा सबके त्राण
क्रोध प्रेम दुःख दया आदि जीवनक अंश
अहि स पूर्णतः विमुक्त भेने कठिन
परन्तु गलत के बिसरक नीक विचारके
आश्रय देने अछि अपन आधीन
दया परोपकार के अधिष्ठात्री अछि
दुःख ख़ुशीक महत्व बुझाबैत छई
क्रोध स हठ प्रेम स त्याग जनमैत अछि
बस उचित दिशा निर्देशन आवश्यक छई
मानवक बुद्धि भवनासा प्रभावित होयत अछि
भने ओ स्वयं के विधाता बनाउने फिरैया
आधुनिकताक होड में निष्ठुरता ओढ़ाने अछि
भावनाहीन भ क जीवित नहिं रही सकैया
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6) हम्मर गाम

गर्मी में सूर्योदयक समय कतेक शांत आ शीतल
लू आ उमस स भरल दुपहरिया तेहने बिगरल
साँझ होय स पहिने धुल ढककर आ बिहारि
रायत होति देरी अन्हार ताहि पर मच्छडक मारि
अहि सबहक बीच बसल एक मात्र मिठास
अप्पन भाषक गूंज देने अछि गाम जयक प्यास
जतय सभ्यताक लाज में अपनापन नहिं नुकायत छल
लोक हाक डा का हाल पूछय में नहिं सकुचायत छल
अनार, सरीफा, खजूर, लताम, पपीता, जलेबी, केरा सहित लीचिक बगान
केसौर, कटहर, बेल, धात्री, जामुन, बेरक संग अपन पोखरिक मखान
फेर आमक गाछी सेहो अछि जतय गर्मी बितौनाई नहिं अखरल
हवा बिहारि में खसल आम बीछ लेल भगनाय नहीं बिसरल
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7) विकास

विकासशीलताक उच्चतम शिखर
कतय आर कतेक दूर पर भेटत
कहीं ई मृगमरीचिका ता नहिं
जे लग गेला पर बिला जायत
प्यासल के लोभ द क बजबै लेल
कनी दूर में फेर स देखायत
मनुख विज्ञान आ तकनीकक नशा में
आर कतेक दिन ओकरा खिहारैत रहत
यात्रा मात्र स प्रकृति दूषित भेल
भेट में की जानी कतेक हनी हैत
परन्तु अपन ज्ञानक सीमा संकुचित क
बुद्धी के स्थूल ता नहिं कैल जायत
विचारशीलता आ सामंजस्य चाही
जतय विकासक मार्ग नहिं रोकल जायत
संगही प्रगति आ प्रकृति के भैयारी
विज्ञानक नाम पर नहिं तोरल जायत
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8) बाल - श्रम

बालपनक किलकारी भूखक ताप स भेल मूक
 पोथी बारि कोदरी पाडैत हाथक मारि अचूक
कादो रुद बसती में श्रम केनाई भेल मजबूरी
गरीबीक पराकाष्ठा ! पेट आ पीठ के बढ़ैत दूरी
किछु धनहीनता आ किछु माता पिताक मूर्खता
मुदा सबस बेसी स्वार्थी समाजके संवेदनहीनता
जे बालक के श्रमिक बनय पर बाध्य केलक
लेखनी के छिनी कोमल हाथ में करची धरेलक
माल जाल के सेवा करैत बाल्य जीवन कुद्रूप
अपने भविष्य के अन्हार करैत अज्ञान आ अबूझ
विद्योपर्जनक ककरा फुर्सत ? स्थिति त तेहेन भेल
चोर बनक आतुर अछि बालपन दू दाना अन्न लेल
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9) मेघक उत्पात

कनिक काल द पनिक फुहार
फेर ललक अपन आंजुर सम्हारि
देखू मेघक उत्पात
लोकक आस के उपहास करैत
कखनो दर्शन द बेर बेर नुकाईत
मौला गेल गाछ आ पात
कखनो गरजी भरी क रही गेल
कखनो बरसी बरसी भरी गेल
डूबल नदीक कात
कोसिक प्रवाह सब बांध तोरलक
गामक गाम जलमग्न केलक
ततेक भेल बरसात
किसानक भविष्य मेघ पर आश्रित
मेघक इच्छा पूर्णतः अप्रत्याशित
सबसालक अनिश्चित अनुपात
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10) बरखा तू आब कहिया जेबै

बरखा तू आब कहिया जेबै
अकच्छ भेलहु सब तोरा सय
बुझालियाऊ तू छें बड्ड जरूरी
मुदा अतीव सर्वत्र वर्जित छई
आर कतेक तंग तू करबैं
बरखा तू आब कहिया जेबै
बेंग सब फुदकी फुदकी क
घुसी रहल घर आंगन में
ओकरा खिहारैत सांपो आयत
तरह तरहक बिमारिक जड़ी
मच्छर सबके खुशहाल केलय
बरखा तू आब कहिया जेबै
कतौ बारही स घर दहाइत अछि
कतौ गाछ सब उखड़ी क खसल
आन जान दुर्लभ तोरा कारण
कतेक खतरा तोरा संग आयल
रास्ता सबके कादो स भरले
बरखा तू आब कहिया जेबै
टूटल फूटल खपरी स छारल
गरीबक कुटिया कोनाक सहत
तोहर निरंतर प्रवाहक मारि
पशु पक्षी सब आश्रयहीन भेल
नैहर के तू सासुर बुझलें
बरखा तू आब कहिया जेबै
तोहर जीते शीतलहरी आयत
अपन प्रकोप देखाबा चाहत
मुदा पहिने आयत शरत ऋतु
कनिके दिनक आनंदी ला क
पनसोखा देखेनाई नहीं बिसरिहैं
बरखा तू आब कहिया जेबयं
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11) मिथिलाक विस्तार

हम सब ओही समूहक लोक
इतिहास छानाब जाकर भाग
संस्कृति के बड्ड धनी
मुदा संरक्षण के अभाव
जहिया सबके नींद खुजत
तहिया करब पश्चाताप
ओहि सभ्यता के ताकब
जे अखन लगैया श्राप
उन्नति के पथ पर चलै लेल
पहिन्लाहू आधुनिकताक पाग
जिनका स ई सुरक्षित अछि
से गबैत बेरोजगारीक राग
जे गरीबीक सीमा पार केला
से व्यस्त प्रतियोगिता में दिन राति
एक संजीवनी बूटी के अभिलाषा
जे सभ्यता के दियै सुरक्षित आधार
विश्वस्तरीय संस्था के निर्माण होए
मिथिलाक विशेषता के जे कराय विस्तार
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12) ईशक अराधना

हे ईश एहेन हाथ दिय
जे कर्मठ आ कुशल होय
अहन लग मात्र जोरिक
कर्म के तिलांजलि नहीं दै
पूजक संग कार्यक संगम
जकरा लेल ग्राह्य होई
हे ईश एहेन पैर दिय
जे अपन भार सही सकय
आनक जखन प्रयोजन होई
त सभस आगन बरही सकय
औचित्य स विचलित जकरा
कोनो बाधा नहिं क सकय
हे ईश एहेन वाणी दिय
जाहि में वास करैत शारदा
मिठास होय आ शीतल होय
नहिं होय भय आ लोलुपता
अहांक अराधना भक्ति भाव स
देव वाणी में करक दिय क्षमता
हे ईश एहेन दृष्टि दिय
अहांक रूप के करबे चिन्हार
अहांक वास जखन घट घट में
फेर कियैक जाऊ हिमालय पहार
सत्कर्म के हम पूजा मानी
नहिं रहे अग्यानताक अन्हार
हे ईश एहेन बुद्धि दिय
अहन पर सदैव रहे विशवास
संतोष आ शांति पाबी
बेसी के नहिं है आस
प्रानिमात्रक कल्याण हेतु
क सकी आमरण प्रयास
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13) खरहाक भोज

खरहा सब भामि भामि
बारी में अछि भोज करैत
जतेक छल रोपल साग पात
कुचरी कुचरी क चरइत
एहेन असहति दृश्य देखि
गृहस्थक तामसे मोन जरैत
प्रतिदिनक निरंतर प्रयास
बारी छल फूलैत फलैत
अतेक दिनका कायल धायल पर
ई सब छल पानि फेरैत
भीरल सब ओकरा पर
चारु दिस स खिहारैत
कियैक ओ ककरो हाथ आयत
नहिं देरी भेलय ओकरा पडायत
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14) कल्पनालोक

कल्पनालोक में विचरण करैत छलहू उन्मुक्त
सबतरहक विषाद जतय भा गेल छल लुप्त
आह्लादित हृदय सेहो रहय विष्मय स युक्त
प्रशंसा में स्वर्ग शब्द लागल सबस उपर्युक्त
कोनो भूमि नहिं भेटल जे छल कलह स लिप्त
थाम्ह्लाहूँ जतय कतौ छल स्नेहक जल स सिक्त
आरोग्यक कछुर रंग छल सर्वत्र पल्लवित
ताहि पर ख़ुशी कोमलता पूर्वक रहय पुष्पित
शांति तेहेन जे देलक अपूर्व आत्मा संतोष
दूर दूर तक कतौ देखायल नहिं आक्रोश
एहेनो दुनिया हैत कतौ से नहिं छल भरोस
जाहि स दुखी छलहू से मेतायल सब रोष
वास्तविकता अछि अलग से त स्वयंसिद्ध
समस्या स जुझैत की बच्चा की वृद्ध
कल्पनाक साकार भेने अछि अहि में निहित
घर घर जखन लोक हैत शिक्षित आ समृद्ध
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१५) कोसिक प्रकोप
प्राकृतिक प्रकोप मिथिला में
देखि के नहिं हैत अधीर
देहैत डूबैत जन जीवन
सरकार बनल अछि बहीर
कहिया स अछि बनल
कोसी नदी बिहारक शोक
पर्यावरण के सतत हनन
कियैक नहिं लागल रोक
घमैत हिमनद बढ़ैत जलस्तर
सृष्टि के दिनोदिन बढ़ैत तापमान
पर्यावरण पर गंभीर चिंतन आवश्यक
पहिने वर्तमान संकट स पाबी निदान
कतेक सालक समय देलाक बाद
फेर रास्ता बदली ललक कोसी नदी
अहि महाप्रलय स बचनाय चाल संभव
समय पर सरकारी कोष खुजितय यदि
मजबूत बांह आ प्रवाहक मार्ग दर्शन लेल
भूगोल वेत्ता आ अभियंता आगू आबैथ
जल संचय स सिंचायक समस्या भगा
जलशक्ति स विद्युत् बनाबैत
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१६) असल राज
लन्दन शहर में भोरक भीर स
भगैत दिनचर्या के आढ़ी स
ठाढ़ भेलहु कात भा
लागल सबके प्रेत रेवारने छल
आकी कोनो लोटरी फुजल
सबके तेना पराहि लागल छल
समय स छलय सब पैबंद
विदा काज दिस एक बैगक संग
ओवेरकोत में भेल बंद
मिथ्या अभिमान भेल विलीन
सब कजाक सुर में तल्लीन
स्वावलंबी आ आत्माधीन
कानूनन ठीक अछि जे कोनो काज
टकरा करैमे जे नहिं केलक लाज
सैह क रहल अछि असल राज
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