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Saturday, April 7, 2012

रहसा चौर :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


रहसा चौर

भीतर मि‍थि‍लाक ओ भूभाग
चौड़गर एकटा चौरी छै।
दूर-दूर धरि‍ पसरल-पसरल
बि‍‍सवासू खेतीक भूमि‍ नै छै।
नअो मास पानि‍ये गुड़गुड़ा
हि‍आ-हारि‍ कनबो करैए।
माटि‍योक कर्मक फल तेहने
अपने बेथे चि‍चि‍आ रहल-ए।
तीन मास सुखा सुख पाबि‍
करमी, केशौर कोढ़ि‍ला सजबैए।
जि‍नगी-मृत्‍युक भय मेटा,
संग मि‍लि‍ सभ भाँज पुरबैए।
चारि‍ गामक बीच बसल
नमगर-चौड़गर सीमा घेरैत
चारू कातक पानि‍ गुड़कि‍
अद्रेसँ झील बनबैत।
गामक माटि‍क जँ दशा एहेन
मि‍थि‍ला राज केहेन बनतै।
बाहरे-बाहरक सुसकारीसँ
गहुमनक बीख केना झड़तै।
वि‍चार इमानक ककरा कहबै
खोलि‍ देखू मातृकोष।
अपने-आप प्रश्न पूछि‍
वि‍चार करू सम्‍हारि‍ होश।
    ))((

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