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Sunday, April 8, 2012

वि‍षधरक बीख :: जगदीश मण्‍डल


वि‍षधरक बीख

सुति‍ उठि‍ नि‍कलि‍ते आंगन
लप दऽ धेलक वि‍षधर।
तड़बाक बीख मगज चढ़ि‍ते
लटुआ खसलौं पेरापर।
जखने देखलक पहि‍ने जौहरी
छाती पीट-पीटि‍ फुकलक शंख।
अवाज सुनि‍ कुत्ता अकानि‍
भूकि‍-भूकि‍ जोड़लक संख।
अचेत देखि‍ जौहरी बाजल
झब दऽ मंगाउ चटधारी।
मरि‍ गेल बाटे वि‍षधर
बगदल यात्रा (सगुन) चटधारी।
नै उतरल बीख चटि‍औने
तैयो बँचल छै प्राण।
बपहारि‍क संग बेथा गाबि‍
कहि‍या हेतै प्रेमीक त्राण।

))((

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