अन्हराएल छी
जते सोझरा चलए चाहै छी
ओते आरो ओझराइए।
टीक पकड़ि चिड़चिड़ी जहिना
टिकासन चढ़ि चिचिआइए।
रंग-बिरंगक अन्हार पसारि
निसचरक सिरजन करैए।
कतौ सुर्ज झापि अन्हार
तँ कतौ बुइध विलाइए।
सृष्टिक सिरजने अन्हारमे
इजोतमे आनए पड़त।
जाधरि से नै आनि पाएब।
अन्हारे-अन्हार बौअए पड़त।
दोहरा कऽ कियो जन्म नै लइए
ऐ धुआ-काया संग।
उच्चमना संकल्प साधि
पकड़ि पथ चलू निमग्न।
दुनियाँक सुन्दर फुलवाड़ीकेँ
चिक्कन-चुनमुन सजैत चलू।
प्रेमाश्रु संग सरोवोर भऽ
हँसैत-गबैत चलैत चलू।
))((
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