महजाल
महजाल पसरि पुरनी पोखरि।
माटि जलधर कात केचली
उड़ि उड़ि सदए चालि बदलए
पाबि गदिआएल जुआनी
नाचि-नाचि जिनगी बदलए।
एक-दोसरकेँ ठोठ दाबि
गैंची-अन्है रूप धड़ए
पाबि प्रकृतक वेढ़ंगी चालि
कानियौं खीज जिनगी धड़ए।
नीकक गुण छी नीक बनबैक
अधला किअए पुस्तैनी छोड़त
अधला जँ चालि-वानि बदलए
नीक िकअए अभिमानी छोड़त।
भलहिं भभकि जाए इचना-पाेठी
तेकर नै परवाह करू
सजि रूप सरिता सरोवर
धीर भऽ धीरज धरू।
ससरैत देखि महजालकेँ
जरैत जाठि चिकड़ि कहत
गतिया-गतिया रूकि ठमकि
सभ किछु सुनबैत चलत।
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