लटुआ
लहैकते आगि मनमे
लटुआ-लटुआ लटए लगैत।
देखि, आशाक अवरूद्ध बाट
मुरझि-मुरझि टगए लगैत।
रंग-बिरंगक आगि पजरि
पकड़ि मन झरकाबए लगैत।
तड़पि-तड़पि, छटपटा-छटपटा
धरती फाड़ि निकलए लगैत।
पटुहा भेल नगर (गाम) देखि
बिलगा-बिलगा गुनए लगैत।
कियो पीड़ित अन्न-वस्त्र बिनु
कियो अवासक आस लगबैत
कियो मनुखक जिनगी पाबए
ज्योति पबैले कियो मुँह बबैत।
हरा गेल आकि पड़ा गेल
बुझा दिअ हमरो यौ भाय
लुटा गेल आकि छीना गेल
सेहो कनी दिअ बुझाए
सभ चाहए सुखसँ जीयब
माएक सजाओल अांगनमे।
बेचैनीसँ चैन नै पाबए
लेत साँस निचेन आंगनमे।
कहेयो बल, कहियो सुसकारी
आइ धरिक इतिहास कहै छै।
एकैसम सदीक मशीनी मनुख
तेकरा लेल की सभ कहै छै।
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