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Saturday, April 7, 2012

अच्‍छेलाल शास्‍त्रीक दूटा कवि‍ता


की देख रहल छी?

गाम-गाममे अछि‍ पसरल झगड़ा।
लोभी बैमान करैत अछि‍ नखड़ा।।
घर बि‍गारू करैत देखू बखड़ा।
सभ कि‍छु जानि‍ रहल मैया सखड़ा।।
झगड़ घर बि‍गारू लगा रहल अछि‍।
बूतल आगि‍केँ सुनगा रहल अछि‍।।
फुसि‍ गप कोना पति‍या रहल अछि‍।
कनफूसकी कऽ ओ बति‍या रहल अछि‍।।
की कही घर-घरमे अछि‍ तँ यएह दुख।
देख जड़ैत एक दोसरक सुख।।
सभटा खेला करैत टोल प्रमुख।
एक दोसरकेँ प्रगति‍क खएबाक भुख।।
मूर्दाकेँ उखाड़ि‍ गनका रहल अछि‍।
भायपर भायकेँ सनका रहल अछि‍।।
जन धन-क्षण कोना गमा रहल रहल अछि‍।
परि‍वारक प्रगति‍ तँ जा रहल अछि‍।।
एे लेल मि‍लल देशक आजादी।
गलती करबाक लोक भेल आदि‍।।
लड़ैत मरैत वादी प्रति‍वादी।
देशक जन-धन-क्षण हुुअए वर्वादी।।
कहू तहन ऐमे गलती कि‍नकर।
हि‍नकर कि‍ हुनकर देख रहल दि‍नकर।।
(())

दू हजार दस श्रावणक दृश्‍य-

सुखि‍ गेल पोखरि‍ डाबर घर।
पूर्वा बहैत जाड़ बेजाड़।।
लागल दमकल फट-फट करैए।
चर चाँचर सभ छट-छट करैए।।
सगर डगर बाट गर्दा उड़ैए।
दूपहर चलक नै मन करैए।।
खेतक बीआ सुखल बीरार।
ने कादो आ ने होइत गजार।।

श्रावण लगैत बैशाक मास।
धान नै लागल शकल चास।।
बाधक बाध चरैत अछि‍ माल।
कि‍ कहतन्‍हि‍ कि‍यो हाल-चाल।।
कखनो हवा शान्‍त रौद गुमार।
केहेन अछि‍ खेतीहर कपार।।
लागल तागत सभटा बुड़ल।
दाहीपर अछि‍ रौदी घूड़ल।।
कि‍सान पि‍सान दुख नै बुझत।
अपना दि‍स तँ सभकेँ सुझत।।

शीघ्र करू सरकार जोगार।

सुखि‍ गेल पोखरि‍ डाबर धार।।

(())



गाम- सोनवर्षा, पोस्‍ट- करहरी
भाया- नरहि‍या, जि‍ला- मधुबनी (बि‍हार)


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