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Saturday, April 7, 2012

मानव गुण :: जगदीश मण्‍डल


मानव गुण

जाधरि‍ गुण नै अबैत मनुजमे
ता धरि‍ मनुज मनु रहैए।
अबि‍ते गुण फल-फूल जहि‍ना
नाओं अपन धड़बए लगैए।
जाधरि‍ फूल महक नै पबैत
कोढ़ी-वाती कहबैत रहैए।
तहि‍ना ने मनुखो बीच
मनुष्‍य-मनुख कहबैत रहैए।
गुण अनेक समेटि आठ
पौरुष गुण कहबैए।
पबि‍ते पाबि‍ बनैत गुणी
महापुरुष बनए लगैए।
जहि‍ना-जहि‍ना गुण बढ़ै छै
तहि‍ना-पुरुखपनो बढ़ै छै।
अबि‍ते पौरुष तन मनुजमे
महापुरुष कहबए लगै छै।
तीन गुण आदि‍ये सँ आबि‍
सत्-रज-तम कहबैए।
तामस-प्रीति‍ मनुखेटा नै
पशु-पक्षी सेहो पकड़ैए।
जहि‍ना-जहि‍ना पशु-पक्षी बीच
गुण तीनू गुणगान करैए।
एक-दोसरसँ हटि‍-सटि‍
कामी-लोभीक रूप धड़ैए।
बि‍ना कि‍छु कहनौं-सुननौं
बीख बमन सदति‍ करैए।
गहुमन चालि‍ बूझि‍ देखि‍
मनुष्‍यत्‍व डरए लगैए।
मुदा टोननि‍हार मनुखो होइ छै
उपाए तेकर सोचए लगैए।
मंत्र-जौड़ सीखि‍-सीखि‍
चि‍त्ती-कौड़ी भाॅजए लगैए।
भजि‍ते चि‍त्ती-कौड़ी धरती
गरुड़ चालि‍ पकड़ए लगैए।
चारू दि‍शा नजरि‍ दौगा
अकास बीच उड़ए लगैए।
उड़ि‍ते अकास देखए लगैत
बील-धोधड़ि‍ वृक्ष-धरती
एक अकास दोसर पताल
जागल वृक्ष सुतल धरती।
जहि‍ना बरही काठ खोदि‍
उखड़ि‍ ढोलक कठरा बनबैए।
तहि‍ना ने कठखोधि‍यो खोदि‍
हीर काटि‍ धोधड़ि‍ बनबैए।
रक्षि‍त सुरक्षि‍त भवन बीच
चैनक जि‍नगी बास करैए।
नि‍च्‍चाँ धड़तीक बोहरि‍ देखि‍-देखि‍
सुख-सेजि‍ वि‍श्राम करैए।
ने डर पानि‍ ओ पाथर
हवो ने कि‍छु कए सकैए।
धरती सहजहि‍‍ पड़ल-सुतल
भयये कि‍अए भऽ सकैए।
मुसक खुनल बील पकड़ि‍
नाग-नागि‍न कहबए लगैए।
नागे तँ धरती टेकने छै
अखण्‍ड राज भोगै छै।
जेकरे बनाओल घर बसै छै
तेकरे पकड़ि‍ भोजन करै छै।
सुख-पतालक पाबि‍-पाबि‍
अकास-पताल लोक गढ़ैए।
भोगी जोगी बनि‍-बनि‍
मंत्र सूत्र गढ़ए लगैए।
सुर्जो-चानक गति‍-मति‍केँ
रगड़ि‍-रगड़ि‍ मेटबए लगैए।
कहि‍यो बादर पकड़ि‍
मेघाओन रूप धड़ए लगैए।
तँ कहि‍यो देव-दानव ठर्ड़ा
बेबस भऽ देखए लगैए।
))((


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