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Tuesday, April 10, 2012

प्रशांत मिश्र - हड़ाहि



एकटा हड़ाहि जे रातिमे पटकलन्हि साँए के
तोड़लन्हि चौकी
भोरे-भोर पड़ोसनीकेँ गरिअबैत कहलखिन्ह
हँ, चुप्प रह गे सत्तबरती
राँड़ी, छुच्छी, सँएखौकी

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