अपना आँखिये सभ देखैए
अपना चालिये सभ चलैए।
सज्ञान-अज्ञान आँखिक बीच
चालियो अपन चालि मारैए।
जहिना धारक दू भीत्ता बीच
पानिक तेज धार बहै छै
तहिना ने मनुख-मनुख बीच
अपन-अपन जिनगीक धारा
छै।
चालि-चलनि सदृश टुकड़ी
जुटि-जुटि महार बनै छै।
जहिना धारक महार संग
आकृति रंग-विरंगक छै।
सभ मनुख बीच तहिना ओहिना
सदएसँ बनल अबै छै।
एक जाइए दोसर अबैए
उराहि-उराहि कर्म करैए।
उराहए-निमाहए लेल
बेबस्था बीच छै अनमेल।
कियो लिरही पोखरि सदृश
तँ कियो मरता इनार जकाँ
सदएसँ पड़ल मरता भेल।
बेबस्था जकरा हाथ लगल छै
सेहो तँ भूतही धार बनल छै।
उनटैत-पुनटैत करैए खेल
तामसे बीच बिखाह अछि
भेल।
उमेश मंडल
सम्पर्क- गाम-बेरमा, पोस्ट- बेरमा
भाया- तमुिरया, जिला- मधुबनी
(बिहार)
No comments:
Post a Comment