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Saturday, April 7, 2012

नाराशंसी- (गीत-प्रबन्ध- गजेन्द्र ठाकुर)




कोड़वाह ठाढ़ टिक्करक नीचाँमे
हलमहल कऽ कूटि माटि
सिलोहक बनल मुरुत ई मनुक्ख
छोलगढ़ियाक गुलाबीपाक
एहि बेर नहि जानि किएक रहल कचकुआह

आ बीतल कएक दिन, छठिहारी छठम दिन
कविक कविताक छन्दक रससँ उगडुम करैत
आ डराएल विश्वदेव जे पद्यक रस जे झझाएत तँ
पसरि जाएत सगर विश्वमे गायत्री नाराशंसीक संग
से ओ

कविक कविताकेँ छन्दक रसमे राखि दैत छथि
बलि दऽ दैत छथि
कविक कविताक छन्दक रसक बलि
आ गबैत छथि नाराशंसी।

आ आकांक्षाक अग्नि
पृथ्वीसँ द्युलोक दिस जाइत
माता पृथ्वीक हृदएक आगि
द्यौ पिताश्री पृथ्वीक पुत्र वा भाए
आलोकदीप्त ई नीलवर्णक आकास
अरणिमन्थनसँ प्रकाशित ई पृथ्वी



कर्कश बजरी सूगाक स्वर
ओतए धारक पलार लग



आ दूटा धारक हहाइत मोनियारक
भँसिआएल खेबाह कहुना निकलि गेल मुदा
आगाँ बढ़िते जक, बढ़ब आकि धँसब
झाँखीक झझिया करत सुरक्षित हमर गाम
दाह-बोह आएल, किएक ई
एकार्णवा, दह, जलामय, कनबहकेँ झाँपि

खेधा-पौटी नाहक माङीपर बैसि
खसबैत बसेर जाल आ हम दोसर माङीपर बैसि खेबैत छी
ओहि जालकेँ, दिशा निर्दिष्ट भऽ
कन्हेर करैत
जालक चारूकात ठकठकिया करैत
अनैत माँछकेँ जाल दिस

टुस्सा, सारिलबला काठक तँ गाछी विलुप्त
बबुरबन्ना बनल ओहि पारक खेत, कमलाक रेत

बदहा पहिरने लोक, आ ई गाछ बृच्छ
ठाढ़ मुदा हरियरी, जेना दुःखी पीड़ित
टुस्साक निकलब, जेना आगमन कोनो अभागक
चारू कात पसरल कमलाक रेत, आ ताहि बीच टुस्सा निकलब
मुदा संकेत प्रायः कोनो आसक।

आ तखने ध्वनि
मधुर स्वर बला करार सूगाक
कंठ लग लाल दागी बला अमृत भेला सूगाक
स्वर अबैत बनि नाराशंसी।


गायत्री बनि गेल चिड़ै आ बिदा भेल गन्धर्व लोक
अनबा लेल सोमरस
ओहि रसमे उगडुम करत हमर कविता
नहि बुझल अछि व्याकरण छन्द
त्रयोदशीकेँ व्याघ्र केलक हत्या पाणिनिक
त्रयोदशीकेँ के देलक शिक्षा हमरा?
जखन व्याकरणाचार्य बन्न केने छथि,
बन्न अछि त्रयोदशी तिथिकेँ व्याकरणक पठन-पाठन
व्याकरणाचार्य नहि पढ़ैत छथि, नहि पढ़बैत छथि ओहि दिन व्याकरण
आ त्रयोदशी तिथिकेँ अबैत छल गायत्री चिड़ै बनल
त्रयोदशीकेँ के देलक शिक्षा हमरा
चिड़ै बनल गायत्री देलक हमरा शिक्षा गबैत नाराशंसी
......
मड़ियाक सूक्ष्म प्रहार
बनबैत अछि सोनक काञ्चनपुरुष।
आ एतए
पुत्रक उत्पत्तिक पूर्वहि राखब ओकर नाम?
काञ्चनपुरुष!
ने कोनो सूत्र ने कोनो ठाम
आ तकर बादक सभ गप, बात-विचार
ककर के,
आ ककरासँ ककर
के अछि ओ ठाढ़ जे आएत हमर माँझ

पघरियाक प्रहारक काजो नहि
सुखाएल अछि जड़ि
फेर..
फेर कमरसारिक खट-खुटक ध्वनि
सड़ेस कागचक बालु जेना आक रेत
आ हम दसौढ़ी चौकठिक आगाँ भेल छी ठाढ़
दसौढ़ी चौकठिक दोहराएब नहि पसिन्न
नहि पसिन्न सूक्ष्म कलाकृति
जे लेने रहैत अछि, नुकेने रहैत अछि
कएक टा रहस्य
कएक टा बात-विचार संस्कार
....
काञ्चनपुरुष!
आएत हमर माँझ?
त्रयोदशीकेँ के देलक शिक्षा हमरा
चिड़ै बनल गायत्री देलक हमरा शिक्षा गबैत नाराशंसी
नाराशंसी- मनुक्खक स्तुति

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